BA Semester-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2632
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत

भाग - 1

अध्याय - 1

संस्कृत वाङ्मय में पारम्परिक ज्ञान, विज्ञान एवं राष्ट्र गौरव

(वैदिक एवं लौकिक संस्कृत साहित्य में भारतीय दर्शन, भूगोल एवं खर्गोल, गणित, ज्योतिष तथा वास्तु, योग, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, विज्ञान व संगीत का सामान्य परिचय)

 

प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।

उत्तर-

'दर्शन' शब्द संस्कृत की दृश् धातु से ल्युट् प्रत्यय लगाकर बना है। ल्युट् प्रत्यय का प्रयोग 'भाव' तथा 'करण' दोनों ही अर्थों में लगता है। इस प्रकार दर्शन शब्द का अर्थ साक्षात्कार या ज्ञान एवं उसका साधन दोनों ही होता है। इसका तात्पर्य यह है कि समग्र जीवन या सारी सृष्टि के स्वरूप या तत्व पर विचार और फलतः उसका ज्ञान या साक्षात्कार ही दर्शन है। इस तरह दर्शन सम्पूर्ण जीवन के सभी पक्षों से सम्बन्धित है। जीवन सम्बन्धी किसी भी ज्ञान-विज्ञान को इससे पृथक नहीं रखा जा सकता। इसीलिए आधुनिक युग में भी इतिहास समाजशास्त्र राजनीति तथा विज्ञान आदि से दर्शन का सम्बन्ध दिखलाया जाता है। मनोविज्ञान तथा धर्मशास्त्र से तो 'दर्शन' का घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस प्रकार के तत्वविवेचन के लिए 'आन्वीक्षिकी' शब्द का प्रयोग अत्यन्त प्राचीन है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 'आन्वीक्षिकी' चतुर्विध विद्याओं में परिगणित है। वे इस प्रकार हैं- आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता तथा दण्डनीति।

इसी में आन्वीक्षिकी का विवरण देते हुए सांख्य योग और लोकापत को परिगणित किया गया है। इससे ज्ञात होता है कि कौटिल्य के समय तक 'दर्शन' शब्द के पर्याय रूप में 'आन्वीक्षिकी शब्द प्रचलित हो चुका रहा होगा। मनुस्मृति में आन्वीक्षिकी की आत्मविद्या कहा गया है।

भारतीय संस्कृति परम्परा में जिसे 'दर्शन' कहते हैं वह जीवन की प्रयोगशाला में अनुभव किया गया सत्य है चाहे वह साध्य विषयक हो चाहे साधन विषयक विभिन्न समस्याओं में विभिन्न परिस्थितियों के बीच विभिन्न मनीषियों द्वारा किये गये सत्य के अनुसन्धान और अनुभव यद्यपि सर्वथा अनुरूप या एक से नहीं हैं और वैयक्तिक एवं अन्य प्रकार की विशेषताओं के कारण एक-से हो भी नहीं सकते थे तथापि हैं वे सब सत्य की ही खोज के विभिन्न प्रयत्न और अनुभव। इसलिए उनकी 'दर्शन' संज्ञा तथा उनके दृष्टव्यों की 'ऋषि' संज्ञा सर्वथा सार्थक है। 'दर्शन' को इस व्यापक दृष्टि से देखने पर हमारा सम्पूर्ण आर्बसाहित्य वैदिक संहिता में ब्राह्मण आरण्यक तथा उपनिषद् ही दर्शन हैं। सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय प्राचीन तपस्वी मनीषियों एवं चिन्तको के द्वारा दृष्ट या साक्षात्कृत तत्वों या धर्मों की अभिव्यक्ति मात्र है उनका वर्णन है। इसीलिए तो यह दृष्टा 'ऋषि' है - 'साक्षात्कृतधर्माण ऋषयो बभूव"

ऋषि दृष्टि सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय इसी से आर्ष साहित्य कहा जाता है। यह अन्य बात है कि वेदों का सहिता - साहित्य विभिन्न देवताओं देवतातत्वों का दर्शन है उनकी अभिव्यक्ति एवं स्तुति रूप आराधना है। उनका ब्राह्मण साहित्य उन्हीं देवताओं की आराधना के एक विशिष्ट प्रकार यज्ञ अर्थात् वैदिक कर्म-विशेष का दर्शन है।

बृहदारण्यक उपनिषद् के मैत्रेयी ब्राह्मण में महामुनि याज्ञवल्क्य तथा उनकी ब्रह्मवादिनी पत्नी मैत्रेयी के मध्य अमृतत्व प्राप्ति के विषय मे संवाद हुआ है मैत्रेयी के अलावा याज्ञवलक्य की एक और पत्नी कात्यायनी थी जो स्त्री प्रज्ञा' सामान्य स्त्रियों की बुद्धि वाली थी। गृहस्थ आश्रम को त्यागकर संन्यास ग्रहण करने की इच्छा प्रकट करते हुए याज्ञवल्क्य ने एक समय में अपनी ब्रहमवादिनी प्रिय पत्नी मैत्रेयी से कहा - हे मैत्रेयि! मैं कात्यायनी के साथ तुम्हारा निपटारा कर देना चाहता हूँ ताकि मेरे न रहने पर तुम दोनों मे कलह न हो। मैत्रेयी ने उत्तर-

में कहा कि हे भगवान् ! यदि यह सारी पृथ्वी वित्त से परिपूर्ण होकर मुझे प्राप्त हो जाय मैं अमर हो जाऊगी। या नहीं? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया - 'नहीं'। समस्त उपकरणों से उक्त जनो का जैसा जीवन होता है वैसा ही तुम्हारा भी होगा। वित्त से अमृतत्व की आशा करना व्यर्थ ही है। तब मैत्रेयी ने कहा कि हे भगवान् ! जिस वित्त से में अमर न हो सकूँगी उसे लेकर क्या करूँगी। जिसे अमृतत्व का साधन जानते हो उसी का उपदेश कृपया मुझे दे।"

जिसे अमृतत्व का साधन जानते हो उसकी का उपदेश कृपया मुझे दे। याज्ञवलल्य ने कहा मैं मैत्रेयि ! ध्यान दो मैं उपदेश दे रहा हूँ। पति, पत्नी, पुत्र, वित्त, पशु, लोक देव वेद प्राणी - सभी कुछ आत्मा के ही लिये प्रिय होता है पति पुत्रादि के लिए नहीं। अतः सर्वप्रिय आत्मा का 'दर्शन' अनुभव या साक्षात्कार करना चाहिए।

इस संवाद से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि उपनिषदों तक आते-आते आत्मा ही सर्वप्रधान या एकमात्र प्रमेय तथा उसका ज्ञान या दर्शन ही मुख्यतम दर्शन हो गया था। जीवन के सर्वप्रथम पुरुषार्थ अमृतत्व-प्राप्ति अर्थात् मोक्ष का एकमात्र साधन होने से यह आत्मदर्शन मानव जीवन का एकमात्र वास्तविक लक्ष्य बन गया था तथा लक्ष्यभूत इस दर्शन का मुख्य साधन होने से उपनिषद् इत्यादि अध्यात्म श्रुतियों का श्रवण तथा मनन एव तदनन्तर आत्मनिदिध्यालन जीवन की वास्तविक चर्चा। अन्य साधनो की सार्थकता आत्मदर्शन के इन्हीं साक्षात् साधनों की प्राप्ति में सहायक होने में थी। इसी से ये तीन साधन वेदान्त में आत्मज्ञान के अन्तरंग के रूप में प्रसिद्ध है एवं इनके भी साधन विवेक वैराग्य शमदमादि एवं मुमुक्षुत्व बहिरंग। इन विवेकादि के भी बहिरंग सत्संग तीन दान ब्रह्मचर्पादि हैं। इन सभी साधनों की सार्थकता आत्मदर्शन के श्रवणादि साक्षात साधनों की प्राप्ति में सहायक होने में ही मानी जाती थी।

भारतीय दर्शन के मुख्यत दो भेद हैं- आस्तिक तथा नास्तिक। 'आस्तिक' शब्द का प्रयोग अनित्यदेहादि से भिन्न नित्य आत्मा की सत्ता में विश्वास करने वाले के अतिरिक्त परलोक की सत्ता, वेद की प्रामाणिकता, ईश्वर तथा कर्मफल की प्राप्ति में विश्वास रखने वाले के लिये भी होता देखा जाता है।

वस्तुत: द्वितीय अर्थ प्रथम से भिन्न है क्योंकि परलोक की सत्ता में विश्वास करने का अर्थ है परलोकी या परलोक में जाने वाले की सत्ता में विश्वास और इस लोक में परलोक में जाने वाला तो शरीरादि अनित्य पदार्थ से भिन्न ही कोई हो सकता है शरीरादि नहीं हो सकता क्योंकि वह तो नहीं नष्ट होते देखा जाता है। उस नित्य पदार्थ का ही नाम आत्मा है। वेदादि श्रुतियों में इस प्रकार के नित्य आत्मा की सत्ता का अनेकशः प्रतिपादन होने से वैदिकमार्गानुयायी आस्तिक भी तो आत्मवादी या परलोकवादी से भिन्न नहीं हुआ। हाँ चार्वाक आदि जरूर वेदोपदिष्ट नित्य आत्मतत्व की खिल्ली उड़ाने के कारण ही मनुस्मृति आदि में 'नास्तिको वेदनिन्दक' आदि शब्दों के द्वारा 'नास्तिक' कहे गये हैं। यो वेदोपादिष्ट यज्ञादि की निन्दा तो बौद्ध जैन आदि सम्प्रदाय वाले भी करते है परन्तु ये सभी आत्मा की सत्ता मानते है। तब इन्हें आस्तिक कहा जाय या नास्तिक?

बौद्ध अनुयायी नित्य आत्मा को तो नहीं मानते प्रतीत होते तथापि स्वकृत शुभाशुभ कर्मों के शुभाशुभ फलों को तो वे भी मानते ही हैं। अच्छा कर्म करो अच्छी योनि मिलेगी अच्छा फल मिलेगा यह बात तो भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेशों मे अनेकशः कही है। तब तो वे भी परलोक विश्वासी होने के कारण 'नास्तिक' कैसे कहे जा सकते हैं? जैन मतावलम्बी तो शुभाशुभ कर्म करने वाले आत्मा का ही फल प्राप्त्यर्थ परलोक मानने के कारण पूर्ण परलोक विश्वासी हैं। वे तो बौद्ध की तरह आत्मा को अनित्य भी नहीं मानते। तब फिर वे भी नास्तिक कैसे कहे जा सकते हैं। आत्म स्वरूप में भेद होने के कारण इन्हें नास्तिक कहना समुचित नहीं प्रतीत होता। इसी कारण से कुछ विद्वान् विचारक केवल चार्वाक या लोकायत मत को ही 'नास्तिक' तथा शेष सभी को 'आस्तिक मानना अधिक उचित समझते हैं।

परन्तु अनित्य आत्मा मानने से बौद्धों को भगवान् शंकराचार्य ने अपने ब्रह्मसूत्र भाष्य में अनेकश वैनाशिक कहा है। नैयायिक आदि अन्यों ने भी उन्हें अनात्मवादी आदि नाम दिये हैं। अतः वेदाद्युपदिष्ट नित्य आत्मा एवं यज्ञादि में विश्वास न करने एवं उनका खण्डन करने के कारण बौद्धों को प्रायेण नास्तिक सम्प्रदायों में ही परिगणित किया जाता है।

वाल्मीकि कृत रामायण में वर्णित नास्तिक मत से भी इसी बात की पुष्टि होती है। ऐसी स्थिति में जैन एवं बौद्ध मतों को नास्तिक कैसे कहा जा सकता है जबकि वे पुण्य और पाप भी मानते हैं उनके भोगस्थान परलोकों को भी तथा शुभाशुभ कर्मों के अनुसार तन्तत् लोकों में जाने वाले कर्मभोक्ता जीवात्मा को भी। इस प्रकार जैन और बौद्ध दार्शनिक अपने को नास्तिक मानते नहीं प्रतीत होते। ऐसा होने पर भी चार्वाकों की तरह वे भी अपने को वेदवादी दार्शनिक नहीं मानते। वेदवादी दर्शनों में तो न्याय वैशेषिक सांख्य, योग, पूर्वमीमांसा एवं उत्तरमीमांसा या वेदान्त ही आते हैं। वेदान्तों में भी शंकराचार्य के प्रज्ञानाद्वैत के अतिरिक्त रामानुजाचार्य का विशिष्टद्वैत निम्बार्काचार्य का द्वैताद्वैत बल्लभाचार्य का विशुद्धाद्वैत एवं मध्वाचार्य का द्वैत ये चार वैष्णव वेदान्त आते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- भूगोल एवं खगोल विषयों का अन्तः सम्बन्ध बताते हुए, इसके क्रमिक विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भारत का सभ्यता सम्बन्धी एक लम्बा इतिहास रहा है, इस सन्दर्भ में विज्ञान, गणित और चिकित्सा के क्षेत्र में प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण योगदानों पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- निम्नलिखित आचार्यों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये - 1. कौटिल्य (चाणक्य), 2. आर्यभट्ट, 3. वाराहमिहिर, 4. ब्रह्मगुप्त, 5. कालिदास, 6. धन्वन्तरि, 7. भाष्कराचार्य।
  5. प्रश्न- ज्योतिष तथा वास्तु शास्त्र का संक्षिप्त परिचय देते हुए दोनों शास्त्रों के परस्पर सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- 'योग' के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करते हुए, योग सम्बन्धी प्राचीन परिभाषाओं पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आयुर्वेद' पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  8. प्रश्न- कौटिलीय अर्थशास्त्र लोक-व्यवहार, राजनीति तथा दण्ड-विधान सम्बन्धी ज्ञान का व्यावहारिक चित्रण है, स्पष्ट कीजिए।
  9. प्रश्न- प्राचीन भारतीय संगीत के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  10. प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक भारतीय दर्शनों के नाम लिखिये।
  11. प्रश्न- भारतीय षड् दर्शनों के नाम व उनके प्रवर्तक आचार्यों के नाम लिखिये।
  12. प्रश्न- मानचित्र कला के विकास में योगदान देने वाले प्राचीन भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइये।
  13. प्रश्न- भूगोल एवं खगोल शब्दों का प्रयोग सर्वप्रथम कहाँ मिलता है?
  14. प्रश्न- ऋतुओं का सर्वप्रथम ज्ञान कहाँ से प्राप्त होता है?
  15. प्रश्न- पौराणिक युग में भारतीय विद्वान ने विश्व को सात द्वीपों में विभाजित किया था, जिनका वास्तविक स्थान क्या है?
  16. प्रश्न- न्यूटन से कई शताब्दी पूर्व किसने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त बताया?
  17. प्रश्न- प्राचीन भारतीय गणितज्ञ कौन हैं, जिसने रेखागणित सम्बन्धी सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया?
  18. प्रश्न- गणित के त्रिकोणमिति (Trigonometry) के सिद्धान्त सूत्र को प्रतिपादित करने वाले प्रथम गणितज्ञ का नाम बताइये।
  19. प्रश्न- 'गणित सार संग्रह' के लेखक कौन हैं?
  20. प्रश्न- 'गणित कौमुदी' तथा 'बीजगणित वातांश' ग्रन्थों के लेखक कौन हैं?
  21. प्रश्न- 'ज्योतिष के स्वरूप का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- वास्तुशास्त्र का ज्योतिष से क्या संबंध है?
  23. प्रश्न- त्रिस्कन्ध' किसे कहा जाता है?
  24. प्रश्न- 'योगदर्शन' के प्रणेता कौन हैं? योगदर्शन के आधार ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  25. प्रश्न- क्रियायोग' किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- 'अष्टाङ्ग योग' क्या है? संक्षेप में बताइये।
  27. प्रश्न- 'अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- आयुर्वेद का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  29. प्रश्न- आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्तों के नाम बताइये।
  30. प्रश्न- 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' का सामान्य परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्य क्या है? अर्थात् काव्य की परिभाषा लिखिये।
  32. प्रश्न- काव्य का ऐतिहासिक परिचय दीजिए।
  33. प्रश्न- संस्कृत व्याकरण का इतिहास क्या है?
  34. प्रश्न- संस्कृत शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? एवं संस्कृत व्याकरण के ग्रन्थ और उनके रचनाकारों के नाम बताइये।
  35. प्रश्न- कालिदास की जन्मभूमि एवं निवास स्थान का परिचय दीजिए।
  36. प्रश्न- महाकवि कालिदास की कृतियों का उल्लेख कर महाकाव्यों पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्य शैली पर प्रकाश डालिए।
  38. प्रश्न- कालिदास से पूर्वकाल में संस्कृत काव्य के विकास पर लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्यगत विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- महाकवि कालिदास के पश्चात् होने वाले संस्कृत काव्य के विकास की विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- महर्षि वाल्मीकि का संक्षिप्त परिचय देते हुए यह भी बताइये कि उन्होंने रामायण की रचना कब की थी?
  42. प्रश्न- क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि माघ में उपमा का सौन्दर्य, अर्थगौरव का वैशिष्ट्य तथा पदलालित्य का चमत्कार विद्यमान है?
  43. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास के सम्पूर्ण जीवन पर प्रकाश डालते हुए, उनकी कृतियों के नाम बताइये।
  44. प्रश्न- आचार्य पाणिनि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  45. प्रश्न- आचार्य पाणिनि ने व्याकरण को किस प्रकार तथा क्यों व्यवस्थित किया?
  46. प्रश्न- आचार्य कात्यायन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  47. प्रश्न- आचार्य पतञ्जलि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  48. प्रश्न- आदिकवि महर्षि बाल्मीकि विरचित आदि काव्य रामायण का परिचय दीजिए।
  49. प्रश्न- श्री हर्ष की अलंकार छन्द योजना का निरूपण कर नैषधं विद्ध दोषधम् की समीक्षा कीजिए।
  50. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत का परिचय दीजिए।
  51. प्रश्न- महाभारत के रचयिता का संक्षिप्त परिचय देकर रचनाकाल बतलाइये।
  52. प्रश्न- महाकवि भारवि के व्यक्तित्व एवं कर्त्तव्य पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- महाकवि हर्ष का परिचय लिखिए।
  54. प्रश्न- महाकवि भारवि की भाषा शैली अलंकार एवं छन्दों योजना पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- 'भारवेर्थगौरवम्' की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- रामायण के रचयिता कौन थे तथा उन्होंने इसकी रचना क्यों की?
  57. प्रश्न- रामायण का मुख्य रस क्या है?
  58. प्रश्न- वाल्मीकि रामायण में कितने काण्ड हैं? प्रत्येक काण्ड का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  59. प्रश्न- "रामायण एक आर्दश काव्य है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  60. प्रश्न- क्या महाभारत काव्य है?
  61. प्रश्न- महाभारत का मुख्य रस क्या है?
  62. प्रश्न- क्या महाभारत विश्वसाहित्य का विशालतम ग्रन्थ है?
  63. प्रश्न- 'वृहत्त्रयी' से आप क्या समझते हैं?
  64. प्रश्न- भारवि का 'आतपत्र भारवि' नाम क्यों पड़ा?
  65. प्रश्न- 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' तथा 'आर्जवं कुटिलेषु न नीति:' भारवि के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  66. प्रश्न- 'महाकवि माघ चित्रकाव्य लिखने में सिद्धहस्त थे' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  67. प्रश्न- 'महाकवि माघ भक्तकवि है' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  68. प्रश्न- श्री हर्ष कौन थे?
  69. प्रश्न- श्री हर्ष की रचनाओं का परिचय दीजिए।
  70. प्रश्न- 'श्री हर्ष कवि से बढ़कर दार्शनिक थे।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  71. प्रश्न- श्री हर्ष की 'परिहास-प्रियता' का एक उदाहरण दीजिये।
  72. प्रश्न- नैषध महाकाव्य में प्रमुख रस क्या है?
  73. प्रश्न- "श्री हर्ष वैदर्भी रीति के कवि हैं" इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  74. प्रश्न- 'काश्यां मरणान्मुक्तिः' श्री हर्ष ने इस कथन का समर्थन किया है। उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  75. प्रश्न- 'नैषध विद्वदौषधम्' यह कथन किससे सम्बध्य है तथा इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- 'त्रिमुनि' किसे कहते हैं? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- महाकवि भारवि का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी काव्य प्रतिभा का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- भारवि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  79. प्रश्न- किरातार्जुनीयम् महाकाव्य के प्रथम सर्ग का संक्षिप्त कथानक प्रस्तुत कीजिए।
  80. प्रश्न- 'भारवेरर्थगौरवम्' पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  81. प्रश्न- भारवि के महाकाव्य का नामोल्लेख करते हुए उसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- किरातार्जुनीयम् की कथावस्तु एवं चरित्र-चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- किरातार्जुनीयम् की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  85. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य-कला की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- 'वरं विरोधोऽपि समं महात्माभिः' सूक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।
  88. प्रश्न- कालिदास की जन्मभूमि एवं निवास स्थान का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- महाकवि कालिदास की कृतियों का उल्लेख कर महाकाव्यों पर प्रकाश डालिए।
  90. प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्य शैली पर प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि कालिदास संस्कृत के श्रेष्ठतम कवि हैं।
  92. प्रश्न- उपमा अलंकार के लिए कौन सा कवि प्रसिद्ध है।
  93. प्रश्न- अपनी पाठ्य-पुस्तक में विद्यमान 'कुमारसम्भव' का कथासार प्रस्तुत कीजिए।
  94. प्रश्न- कालिदास की भाषा की समीक्षा कीजिए।
  95. प्रश्न- कालिदास की रसयोजना पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- कालिदास की सौन्दर्य योजना पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य' की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए -
  99. प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि के जीवन-परिचय पर प्रकाश डालिए।
  100. प्रश्न- 'नीतिशतक' में लोकव्यवहार की शिक्षा किस प्रकार दी गयी है? लिखिए।
  101. प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि की कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- भर्तृहरि ने कितने शतकों की रचना की? उनका वर्ण्य विषय क्या है?
  103. प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।
  104. प्रश्न- नीतिशतक का मूल्यांकन कीजिए।
  105. प्रश्न- धीर पुरुष एवं छुद्र पुरुष के लिए भर्तृहरि ने किन उपमाओं का प्रयोग किया है। उनकी सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
  106. प्रश्न- विद्या प्रशंसा सम्बन्धी नीतिशतकम् श्लोकों का उदाहरण देते हुए विद्या के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  107. प्रश्न- भर्तृहरि की काव्य रचना का प्रयोजन की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- भर्तृहरि के काव्य सौष्ठव पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- 'लघुसिद्धान्तकौमुदी' का विग्रह कर अर्थ बतलाइये।
  110. प्रश्न- 'संज्ञा प्रकरण किसे कहते हैं?
  111. प्रश्न- माहेश्वर सूत्र या अक्षरसाम्नाय लिखिये।
  112. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए - इति माहेश्वराणि सूत्राणि, इत्संज्ञा, ऋरषाणां मूर्धा, हलन्त्यम् ,अदर्शनं लोपः आदि
  113. प्रश्न- सन्धि किसे कहते हैं?
  114. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- हल सन्धि किसे कहते हैं?
  116. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।
  117. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।

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